रोज़ समीकरण बदलते है, हम ठीक है सब इसी धोखे में चलते है!
दूसरे की काट के गर्दन, अपनी बचा के निकलते है!
कहते है, मीडिया और पोलिटिक्स में ही गन्दा खेल होता है!
अरे जाइये साहब, दुश्मन हर पेशे में पलते है!
कौन किसका अहसान मानता है आज, जो जिसे बनाता है लोग उसी का दामन कुचलते है!
याद रखियेगा ये किताब कभी बाज़ार में नहीं आएगी, इसके किरदार आयेदिन बदलते है!
रोज़ समीकरण बदलते है, हम ठीक कर रहे है सब इसी धोखे में चलते है!
wah wah. good one Sir!
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