Skip to main content

होने नहीं देती

इक तड़प है जो सोने नहीं देती 

ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती


मैं चलता चला गली दर गली 

मंज़िल है कि खोने नहीं देती 


बहुत बार लगा कि कह दें सब 

ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती 


हम भी कभी हसीं थे 

हसीं बना रहूं ये उम्र होने नहीं देती 


भरा पेट नफ़रत ही बोता है 

भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती 


नासूर बन गए अब ज़ख्म 

फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती 



 

Comments

Popular posts from this blog

आगे

बढ़ गया हूँ आगे, फिर पीछे कौन खड़ा है।  अड़ गया है साया, इसका क़द मुझसे बड़ा है।। इंसान हो, तो इंसान की तरह पेश आओ।  ये क्या कि अब वो गया, अब ये गया है।। सूरज डूबता है फिर उगने को, पता है ना।  लगता है बस आज (आज ) ही ये भूल गया है।। आज़ाद हो तो साँस लेकर दिखाओ।  क्या मतलब कि सीने पर बोझ पड़ गया है ।। तुम किसको पूछने आये बतलाओ।  वो जिसको ज़माना कब का भूल गया है।।

अब तलक वो - ग़ज़ल

अब तलक वो हमें याद करते हैं, थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।। काफ़िला तो गुज़र गया यारों, मुसाफ़िरों को याद करते हैं।। मंज़रे सहरा तब उभर आया, जब वो बारिश की बात करते हैं।। इंसा-इंसा को भी क्या देगा, क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।।  ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने, वही हमसे किनारा करते हैं।। थका-हारा दिल आख़िर टूट गया, क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।