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Showing posts from December, 2016

होगा

धूप से सुलगते पत्थरों पर कोई परिंदा बैठता तो होगा तपिश अपने पंखों की हवा से झेलता तो होगा। चलते चलो के चलते रहना ही नियम है किसी ने कहा होगा पर अपनी चाल रोक कर रस्ता तो निकलता होगा। हस्ती है तो बस्ती रोशन कर तुझ में  जमाल तो होगा वजूद गुम जाए  ग़म ना कर कोई तो कमाल होगा। तेरे लिए जो मुनासिब है वो तेरा होगा वक़्त जगह तरीक़ा ना सोच ख़ुद-ब-ख़ुद निसार होगा ।

बात

बात तब की है जब ना तुम थे ना हम थे, ना हवा थी ना पतंगे थे। बात तब की है जब सूरज उगता नहीं था, चाँद दिखता नहीं था। बात तब की है जब पेड़ नहीं सरसराते थे, पक्षी ना गुनगुनाते थे। बात तब की है जब शून्य भी शून्य था, अँधेरा  न्यून था। बात तब की है जब नाद ना था, आलाप ना था। पर कौन था जिसने रचा, ये तिलिस्म, ये घनघोर गुंजल। मैं उलझा तुम उलझे, सब उलझे उलझते गए। बात तब की है जब कुछ ना था, और सब कुछ था।