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Showing posts from January, 2016

विस्तार

विस्तार ही सीमा और विस्तार ही अपार। विस्तार ही अवचेतन और विस्तार ही असीम विस्तार ही मूल और विस्तार ही शेष विस्तार ही जीव और विस्तार ही अवशेष विस्तार ही क्रूर और विस्तार ही करूणा विस्तार ही सार और विस्तार ही अन्त विस्तार ही तुम और विस्तार ही हम।

प्यार है तो स्वीकार कर

प्यार है तो स्वीकार कर मेरा सम्बोधन, उद्बोधन, सम्मोहन प्यार है तो स्वीकार कर मेरी ग़लती, नादानी, परेशानी प्यार है तो स्वीकार कर मेरा अतीत, वर्तमान, अस्तित्व प्यार है तो स्वीकार कर मेरी निन्दा, पीड़ा, क्षोभ प्यार है तो स्वीकार कर मेरा आलिंगन, चुम्बन, समर्पण प्यार है तो स्वीकार कर मुझे।