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Showing posts from 2016

होगा

धूप से सुलगते पत्थरों पर कोई परिंदा बैठता तो होगा तपिश अपने पंखों की हवा से झेलता तो होगा। चलते चलो के चलते रहना ही नियम है किसी ने कहा होगा पर अपनी चाल रोक कर रस्ता तो निकलता होगा। हस्ती है तो बस्ती रोशन कर तुझ में  जमाल तो होगा वजूद गुम जाए  ग़म ना कर कोई तो कमाल होगा। तेरे लिए जो मुनासिब है वो तेरा होगा वक़्त जगह तरीक़ा ना सोच ख़ुद-ब-ख़ुद निसार होगा ।

बात

बात तब की है जब ना तुम थे ना हम थे, ना हवा थी ना पतंगे थे। बात तब की है जब सूरज उगता नहीं था, चाँद दिखता नहीं था। बात तब की है जब पेड़ नहीं सरसराते थे, पक्षी ना गुनगुनाते थे। बात तब की है जब शून्य भी शून्य था, अँधेरा  न्यून था। बात तब की है जब नाद ना था, आलाप ना था। पर कौन था जिसने रचा, ये तिलिस्म, ये घनघोर गुंजल। मैं उलझा तुम उलझे, सब उलझे उलझते गए। बात तब की है जब कुछ ना था, और सब कुछ था।

विस्तार

विस्तार ही सीमा और विस्तार ही अपार। विस्तार ही अवचेतन और विस्तार ही असीम विस्तार ही मूल और विस्तार ही शेष विस्तार ही जीव और विस्तार ही अवशेष विस्तार ही क्रूर और विस्तार ही करूणा विस्तार ही सार और विस्तार ही अन्त विस्तार ही तुम और विस्तार ही हम।

प्यार है तो स्वीकार कर

प्यार है तो स्वीकार कर मेरा सम्बोधन, उद्बोधन, सम्मोहन प्यार है तो स्वीकार कर मेरी ग़लती, नादानी, परेशानी प्यार है तो स्वीकार कर मेरा अतीत, वर्तमान, अस्तित्व प्यार है तो स्वीकार कर मेरी निन्दा, पीड़ा, क्षोभ प्यार है तो स्वीकार कर मेरा आलिंगन, चुम्बन, समर्पण प्यार है तो स्वीकार कर मुझे।