ना जाने बेसबब क्यों याद आ गया।
भूल चुका था वो ख़्वाब छा गया ।।
ना पलकें मुंदती हैं ना आँखें गीली होती है।
हमें भी ख़ुद से समझौता करना आ गया ।।
नया ज़माना है, रफ़्तार तेज़ है इसकी।
हमें भी इसका साथ निभाना आ गया ।।
ना मुकम्मल थे ना होंगे हम।
हर चढ़ते दिन, हँसना-हँसाना आ गया ।।
घूमती है गरारी दुनियां की अपने पाँव से।
मंज़िल पता नहीं पर ठिकाना आ गया ।।
भूल चुका था वो ख़्वाब छा गया ।।
ना पलकें मुंदती हैं ना आँखें गीली होती है।
हमें भी ख़ुद से समझौता करना आ गया ।।
नया ज़माना है, रफ़्तार तेज़ है इसकी।
हमें भी इसका साथ निभाना आ गया ।।
ना मुकम्मल थे ना होंगे हम।
हर चढ़ते दिन, हँसना-हँसाना आ गया ।।
घूमती है गरारी दुनियां की अपने पाँव से।
मंज़िल पता नहीं पर ठिकाना आ गया ।।
Bahut unda likha hai
ReplyDeleteThanks Rahul
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