Skip to main content

अब तलक वो - ग़ज़ल


अब तलक वो हमें याद करते हैं,

थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।।


काफ़िला तो गुज़र गया यारों,

मुसाफ़िरों को याद करते हैं।।


मंज़रे सहरा तब उभर आया,

जब वो बारिश की बात करते हैं।।


इंसा-इंसा को भी क्या देगा,

क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।। 


ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने,

वही हमसे किनारा करते हैं।।


थका-हारा दिल आख़िर टूट गया,

क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।
















 

Comments

Popular posts from this blog

होने नहीं देती

इक तड़प है जो सोने नहीं देती  ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती मैं चलता चला गली दर गली  मंज़िल है कि खोने नहीं देती  बहुत बार लगा कि कह दें सब  ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती  हम भी कभी हसीं थे  हसीं बना रहूं ये उम्र होने नहीं देती  भरा पेट नफ़रत ही बोता है  भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती  नासूर बन गए अब ज़ख्म  फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती   

आगे

बढ़ गया हूँ आगे, फिर पीछे कौन खड़ा है।  अड़ गया है साया, इसका क़द मुझसे बड़ा है।। इंसान हो, तो इंसान की तरह पेश आओ।  ये क्या कि अब वो गया, अब ये गया है।। सूरज डूबता है फिर उगने को, पता है ना।  लगता है बस आज (आज ) ही ये भूल गया है।। आज़ाद हो तो साँस लेकर दिखाओ।  क्या मतलब कि सीने पर बोझ पड़ गया है ।। तुम किसको पूछने आये बतलाओ।  वो जिसको ज़माना कब का भूल गया है।।