अब तलक वो हमें याद करते हैं,
थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।।
काफ़िला तो गुज़र गया यारों,
मुसाफ़िरों को याद करते हैं।।
मंज़रे सहरा तब उभर आया,
जब वो बारिश की बात करते हैं।।
इंसा-इंसा को भी क्या देगा,
क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।।
ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने,
वही हमसे किनारा करते हैं।।
थका-हारा दिल आख़िर टूट गया,
क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।
Comments
Post a Comment