कहानी सीधी है, ज़ुबानी दौड़ती है।
ना दिलबर ना माशूक़, जवानी दौड़ती है ।।
बुत ना बन, इस जहां में।
ठहरे, तो बदज़ुबानी दौड़ती है।।
मय्यस्सर ना होगी धूप, ग़म की छाँव में।
ये आग है, पानी की बानी दौड़ती है।।
गिरो, उठो, सम्भलो कुछ करो।
ऐसे ज़िन्दगी कहाँ रुख़ मोड़ती है।।
ना दिलबर ना माशूक़, जवानी दौड़ती है ।।
बुत ना बन, इस जहां में।
ठहरे, तो बदज़ुबानी दौड़ती है।।
मय्यस्सर ना होगी धूप, ग़म की छाँव में।
ये आग है, पानी की बानी दौड़ती है।।
गिरो, उठो, सम्भलो कुछ करो।
ऐसे ज़िन्दगी कहाँ रुख़ मोड़ती है।।
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