ना जाने बेसबब क्यों याद आ गया। भूल चुका था वो ख़्वाब छा गया ।। ना पलकें मुंदती हैं ना आँखें गीली होती है। हमें भी ख़ुद से समझौता करना आ गया ।। नया ज़माना है, रफ़्तार तेज़ है इसकी। हमें भी इसका साथ निभाना आ गया ।। ना मुकम्मल थे ना होंगे हम। हर चढ़ते दिन, हँसना-हँसाना आ गया ।। घूमती है गरारी दुनियां की अपने पाँव से। मंज़िल पता नहीं पर ठिकाना आ गया ।।
Fitoor....jo kagaz pe utar aata hai...