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चलो आज थोड़ी सी रम पी लें


छत पे तो रोज़ चढ़ते हैं, आज बादलों के पार वाले ग़म पी ले! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)
उस पार भी तो कोई रोता होगा, चलो एक छलांग भर के उसके ज़ख्म सी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)

और जब मैं बहकने लगूँ, तो दोस्त होने के नाते ये फ़र्ज़ है तेरा! 
के तू मेरे हाथ न रोके और ये न कह की थोड़ी कम पी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)

सुनते है ग़ालिब को भी पीने का शौक था, अच्छा शौक था!
सयाने होते है पीने वाले, आज इस बहाने, कल उस बहाने से पी लें!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)

रम के खुलते ही फैल जाती है खुशबू फिज़ाओ में, रुको यार ज़रा महसूस तो करने दो!
उफ़ अब ना रोक साकी, चाहे तो मेरी शर्म पी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)

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होने नहीं देती

इक तड़प है जो सोने नहीं देती  ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती मैं चलता चला गली दर गली  मंज़िल है कि खोने नहीं देती  बहुत बार लगा कि कह दें सब  ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती  हम भी कभी हसीं थे  हसीं बना रहूं ये उम्र होने नहीं देती  भरा पेट नफ़रत ही बोता है  भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती  नासूर बन गए अब ज़ख्म  फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती   

आगे

बढ़ गया हूँ आगे, फिर पीछे कौन खड़ा है।  अड़ गया है साया, इसका क़द मुझसे बड़ा है।। इंसान हो, तो इंसान की तरह पेश आओ।  ये क्या कि अब वो गया, अब ये गया है।। सूरज डूबता है फिर उगने को, पता है ना।  लगता है बस आज (आज ) ही ये भूल गया है।। आज़ाद हो तो साँस लेकर दिखाओ।  क्या मतलब कि सीने पर बोझ पड़ गया है ।। तुम किसको पूछने आये बतलाओ।  वो जिसको ज़माना कब का भूल गया है।।

अब तलक वो - ग़ज़ल

अब तलक वो हमें याद करते हैं, थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।। काफ़िला तो गुज़र गया यारों, मुसाफ़िरों को याद करते हैं।। मंज़रे सहरा तब उभर आया, जब वो बारिश की बात करते हैं।। इंसा-इंसा को भी क्या देगा, क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।।  ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने, वही हमसे किनारा करते हैं।। थका-हारा दिल आख़िर टूट गया, क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।