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Showing posts from 2011

Vo deewana tha!

Vo khud ko khoye bina usey pa jana chahta tha, deewana tha! Bina tang bandhe patang udana chahta tha! Kaun samjhaye usey ki bekhayali ki bhi kuch hadden hoti hai, bekhud tha! Bina hadd tode behadd hona chahta  tha! Ulfat mein tha ya vo gaflat mein tha, pata nahi! Par anjam kisi parwane sa chahta tha!

Ghalib Khada Bazaar Mein!!

Ghalib khada bazar mein liye hath mein 4 kanchiyan, dhoondh raha sathi jo khel sake sath vo kanchiayn. Pehli awaz Nida fazli ko lagai to jawab aaya "busy hu! Mushayra hai." Doosri awaz Javed Akhtar ko lagai to jawab dene unki Beghum aayi. Jhunjhla ke teesri awaz Munnawar Rana ko lagai to na palat ke na jawab aaya na di gai koi safai. Thak kar miyan ghalib ne ek thaki awaz Gulzar ko lagai to jawab aaya "likhne mein masroof hu bhai." Pareshan hokar ghalib chal diye wapas apni kabr mein ye kehte hue "maine bekar hi itni hai-tauba machai, aaj jab kanchiayn khelna chaha to puri jamat hi na aayi."

मिटटी का शेर

रेल की पटरियों के बीच पड़ा, सुबह के कोई चार बजे वो सोच रहा जैसे पूरी ज़िन्दगी का निचोड़! जेब खाली, चेहरे पर छाई बदहाली, किसी के लिए भी मुमकिन था सोच लेना, की ये ख़ुदकुशी है!! पर वो शांत था, ठीक वैसे ही जैसा हमने साधुओं को देखा है! हालत उसकी सिफ़र और मुक्कम्मल दोनों थी, बस नज़र का फेर था!! वो मुस्कुराया जैसे उसे कुछ याद आया, हाथों में हरकत हुई और होठ बुदबुदाये! ओह! अब थोड़ी आवाज़ भी आ रही है, उसकी जीभ फ़िज़ा में गाना घुला रही है!! अरे ये तो मगन हो गया, इतना की दूर से शोर करता हुआ इंजन इसे सुनाई ही नहीं दे रहा! इंजन पास आ रहा है, ये बेवकूफ़ अपनी मौत को दावत देता हुआ और ज़ोर से गा रहा है!! मैंने देखा है बचपन में पटरियों सिक्के रख के, जब गाड़ी पास आती है पटरियां थर्राती है! वक़्त है, चाहे तो लौट जा, क्यूँ ख़बर बनना चाहत...

रोज़ समीकरण बदलते है

रोज़ समीकरण बदलते हैं, हम ठीक हैं सब इसी धोखे में चलते है! दूसरे की काट के गर्दन, अपनी बचा के निकलते है!! कहते हैं, मीडिया और पोलिटिक्स में ही गन्दा खेल चलता है! अरे जाइये साहब!  दुश्मन हर पेशे में पलते हैं!! कौन किसका अहसान मानता है आज, जो जिसे बनाता है लोग उसी का दामन  कुचलते हैं! याद रखियेगा ये किताब कभी बाज़ार में नहीं आएगी, इसके किरदार आये दिन बदलते हैं! रोज़ समीकरण बदलते हैं, हम ठीक कर रहे हैं सब इसी धोखे में चलते हैं!!

चुम्बक हो तुम

तुमसे जुड़ने का कोई इरादा तो नहीं था, न मैंने कभी तुम्हारे खवाब पाले थे! पर जब मिले तो यूँ मिले के फिर दूर होना तो दूर, कभी ख्याल में भी अलग नहीं हुए! जुड़े रहने के लिए प्यार के अलावा भी बहुत कुछ ज़रूरी है, और ये सब मैंने तुम से जाना! दिल में सिर्फ जज़्बात होने से ही बात नहीं बनती, और बात बनाने के लिए सिर्फ बातें ही नहीं चलती!  तुम मुझे कितना अच्छे से समझती हो, इतना की मैंने खुद को समझने की परेशानी तुम्हारे सिर डाल दी है। जब जी में आता है मैं तुमसे रूठ जाता हूँ, जब जी में आता है मान जाता हूँ! पर तुमसे दूर जाने का ख्याल मन में नहीं आता! ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे सामने मेरा वजूद लोहा बन जाता है और तुम एक चुम्बक!!

सुन तो ले यार (चाँद)

चाँद आज बहुत ठंडा है, पता नहीं क्यूँ! रोज़ तो पिघल उठता है, आँखों की गर्मी से!  कैसा ये परिंदा है, चहकता नहीं जो!! मेरे दिल की गहराई, अपनी हदें तोड़ती हैं, रूकती नहीं क्यूँ! मन मेरा बेकल हो उठता है, बेचैनी से! कहने को तड़पता है, कहा नहीं जो!! कभी चव्वनी कभी अठन्नी सी सूरत तेरी, लगती है क्यूँ! लगता तुझे भी चाहिए प्यार, किसी से!  ये मौका परस्तो की बस्ती है, छूट पीछे जाता है, समझा नहीं जो!!  

नज़र नहीं आते

मुझे मुद्दा बनना पसंद नहीं, पर दुनिया वाले बाज़ नहीं आते! मुझे फिक्र करना पसंद नहीं, पर उम्मीदों के ढाल नज़र नहीं आते!! हर ओर मेरा ही ज़िक्र चल रहा है, पर करने वाले नज़र नहीं आते! दोस्त और दुश्मन सब पी रहे हमप्याला, पर ज़हर मिलाने वाले नज़र नहीं आते!! सुन ले ऐ काफ़िर वक़्त मेरा भी आएगा, पर अभी आसार नज़र नहीं आते! जीना है अभी बहुत मुझे, पर जिनसे है प्यार वो लोग नज़र नहीं आते!!

चलो आज थोड़ी सी रम पी लें

छत पे तो रोज़ चढ़ते हैं, आज बादलों के पार वाले ग़म पी ले! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें) उस पार भी तो कोई रोता होगा, चलो एक छलांग भर के उसके ज़ख्म सी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें) और जब मैं बहकने लगूँ, तो दोस्त होने के नाते ये फ़र्ज़ है तेरा!  के तू मेरे हाथ न रोके और ये न कह की थोड़ी कम पी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें) सुनते है ग़ालिब को भी पीने का शौक था, अच्छा शौक था! सयाने होते है पीने वाले, आज इस बहाने, कल उस बहाने से पी लें!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें) रम के खुलते ही फैल जाती है खुशबू फिज़ाओ में, रुको यार ज़रा महसूस तो करने दो! उफ़ अब ना रोक साकी, चाहे तो मेरी शर्म पी ले!! (चलो आज थोड़ी सी रम पी लें)

1:07 AM

Its 01:07 am while I am writing this, I do not want to write at this point of time but I didn't want to sleep either. It's a situation somewhere in the middle where you are a victim of baseless worries. Sleep is the only answer and our mind struggles hard to get there. Sometimes we get success and we sleep. The one who doesn't get there, writes a blog like me or update their Facebook status.  I have chosen to write but haven't chosen what to write? "Insaan sab kuch decide kar le zaruri to nahi"   Aaj ka din main kuch khas nahi bana paya, Koi khas koshish bhi nahi kee maine. Will try tomorrow ki kal kuch behtar ho. Kitna asaan hai cheeze kal pe taal dena aur phir chain se so jana, like blaming others on your own faults. Ye Kal bahut bada sukoon hai zindagi mein jo main kabhi nahi karunga vo main aise kal pe taal dunga jo kabhi nahi aayega aur jo mujhe karna vo aise kal pe jo sahi mein kal hi aayega. Tomorrow is a hope, today is a reality and yesterday is my ear...

The Start of this blog!

Hi All After a careful consideration and ending up lots of aalas. Allow me to start my Zehni Ayyashi. As I believe that writing is one of the mind games which brain plays through heart. So see you all soon with my zehni khayal. Love n Regards