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हुनर

वह नगीनों की घिसाई का काम करता था। उसकी पारखी आँखें कम रोशनी में भी खोट पहचान लेती थी और उसी परख की बदौलत घर का चूल्हा रंग बदलता था। चुनिंदा रंग देखे थे उन आँखों ने पर नीलम का मोरिया रंग उसे बहुत भाता था। जिस दिन मालिक उसे नीलम पकड़ा देता, मानो उसे खुद की सुध-बुध न रहती। उसकी हालत दारु के ठेके के बाहर बैठे दारुड़ियों सी हो जाती। वह उसे उठा-उठा के देखता, अपनी आँखों के सामंने नचाता, उसे काटते हुए उसका कलेजा रह-रह कर मुँह को आता। बालों में सफेदी आयी और आँखों में धुंधलापन। अब सिवाय डबडबायें रंगों के और कुछ न दिखता। बैठक अब किसी सेठ की गद्दी पर न होकर घर के बाहर के नीम के नीचे पड़ी खाट पर होती। गली के बच्चे खेल-खेल में उसे कंचे और पत्थर थमा देते और उसके कानों में कटिंग मशीन की गरारियों का शोर गूँज उठता और हाथ ख़ुद ब ख़ुद पत्थर को आँखों के सामने हिलाने-ढुलाने लगते। पत्थरों का क्या है...किसी भी रंग के सही। 
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अब तलक वो - ग़ज़ल

अब तलक वो हमें याद करते हैं, थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।। काफ़िला तो गुज़र गया यारों, मुसाफ़िरों को याद करते हैं।। मंज़रे सहरा तब उभर आया, जब वो बारिश की बात करते हैं।। इंसा-इंसा को भी क्या देगा, क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।।  ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने, वही हमसे किनारा करते हैं।। थका-हारा दिल आख़िर टूट गया, क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।  

होने नहीं देती

इक तड़प है जो सोने नहीं देती  ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती मैं चलता चला गली दर गली  मंज़िल है कि खोने नहीं देती  बहुत बार लगा कि कह दें सब  ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती  हम भी कभी हसीं थे  हसीं रहूं ये उम्र होने नहीं देती  भरा पेट नफ़रत ही बोता है  भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती  नासूर बन गए अब ज़ख्म  फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती   

कुछ बातें - 15

                       कुछ लड़कों को लड़कियों के घर के अंदर तक तक आना चाहिए ताकि उनके माँ-बाप भी देख सकें कि दुनियाँ में अभी भी अच्छे लड़के बचे हैं। कुछ लड़कियों को खुल कर हँसना चाहिए ताकि और लड़कियों को भी पता चले कि जीवन मुस्कुरा कर भी जिया जा सकता है। कुछ लड़कियों को बात करते-करते यूँ ही अचानक लड़कों के कन्धों पर हाथ रख लेना चाहिए ताकि लड़कों को भी पता लगे कि लड़कियाँ भी अच्छी दोस्त हो सकती हैं। कुछ लड़कों और लड़कियों को खाने का बिल बाँट लेना चाहिए ताकि बाद में किसी की आँख न झुके।  कुछ लड़कों को रो लेना चाहिए ताकि और लड़के भी सीख सकें कि लड़कों का रोना कोई गुनाह नहीं है। कुछ लड़कियों को रो लेने देना चाहिए ताकि और लड़कियाँ भी सीख सकें कि सब कुछ रोने से हांसिल नहीं होता। कुछ गिरे हुए बच्चों को उठाना नहीं चाहिए ताकि और बच्चे सीख सकें कि गिर कर ही उठा जाता है। कुछ मर्दों को समय पर घर आ जाना चाहिए ताकि घर पर कम से कम एक समय का खाना सब साथ खा सकें। कुछ औरतों को देर तक घर से बाहर रहना चाहिए ताकि समाज समझ सके कि अब घर गृहस्थी एक की तनख्वा...

आखिरी रात

तुझसे मिलने की आखिरी रात थी। दूर बजती शहनाइयाँ  भी  उदास थी।। खुद्दारी, जोश, जूनून, दीवानापन। न जाने ये किस दौर की बात थी।। मेरे हिस्से जितना आया, कम आया। दिल में हर पल समाई इक प्यास थी।। मैं कौन हूं, क्या हूं, क्या हो सकता था। मेरी बस तुम्हें ही शिनाख्त थी।। कोई हिचकी आई अभी-अभी। शायद वो पर्दानशीं उदास थी।।

दीवार की तरफ़

मैं इंतज़ार में था एक सुन्दर सुबह के जब लगभग सब कुछ सुन्दर ही दिखाई दे। ऐसी सुबह कई बार आती-आती रह गई। फिर धीरे-धीरे मैंने उसकी चाहना ही छोड़ दी। मैं डूब गया कुहरे से सनी सुबहों में, धूसर दिनों में और रातों की कालिख़ में। मुझे मिलते रहे मेरे जैसे लुटे-पिटे लोग, 'जो सुन्दर सुबह हो सकती है इस सम्भावना से आज़ाद हो चुके थे।' हम साथ बैठ कर बात करते, साथ काम करते, साथ खाते-पीते पर उस सुन्दर सुबह का ज़िक्र करने से बचते। असल में हम सुंदरता से घबराने वाले लोग थे। हम वो लोग थे कि जब जीवन में प्रेम ख़ुद चल कर आता है तो भी हम संशय करते कि 'ऐसा हमारे साथ कैसे?'  प्रेम की सुंदरता से वंचित लोग भय में जीते हैं और अंततः प्रेम के प्रति हिंसक हो जाते हैं। ऐसा मुझे सड़क पर दुत्कारे कुत्तों को देखकर ख़्याल आया। लगातार वंचित रहने और दुतकारे जाने पर उनकी तरफ़ जब कोई हाथ बढ़ाता है तो उनका भयभीत होना और गुर्राना लगभग साथ ही होता है। मैं इस भय और गुर्राने की अवस्था को पार करके दूसरी तरफ़ आ चुका हूँ और उदासीन हो चुका हूँ, किसी भी संभावना के प्रति जो मुझे आश्वस्त करती है मेरे जीवन में प्रेम की उपस्थिति को ले...

ज़िंदगी का साज़

ज़िंदगी ने गीत गाया, हमने सुना नहीं।  हमने साज़ बजाया, जिंदगी बेताला हंसी। दूर कहीं पर, एक फूल खिला। उसने खुशबू बिखेरी, हमने अनदेखा किया। हम हमेशा भटकते रहे, थकने से इंकार किया। आसमां तकते रहे, और चमत्कार हमारे पीछे होते रहे।