इक तड़प है जो सोने नहीं देती
ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती
मैं चलता चला गली दर गली
मंज़िल है कि खोने नहीं देती
बहुत बार लगा कि कह दें सब
ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती
हम भी कभी हसीं थे
हसीं रहूं ये उम्र होने नहीं देती
भरा पेट नफ़रत ही बोता है
भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती
नासूर बन गए अब ज़ख्म
फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती
Comments
Post a Comment