तुझसे मिलने की आखिरी रात थी।
दूर बजती शहनाइयाँ भी उदास थी।।
दूर बजती शहनाइयाँ भी उदास थी।।
खुद्दारी, जोश, जूनून, दीवानापन।
न जाने ये किस दौर की बात थी।।
मेरे हिस्से जितना आया, कम आया।
दिल में हर पल समाई इक प्यास थी।।
मैं कौन हूं, क्या हूं, क्या हो सकता था।
मेरी बस तुम्हें ही शिनाख्त थी।।
कोई हिचकी आई अभी-अभी।
शायद वो पर्दानशीं उदास थी।।
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