वो, जो झूठ की धुंध के आर पार है. . . वो, जो दिमाग के कोलाहल की आखिरी सीमा से भी परे है ! वहां, जहां शाम और रात के बीच एक नयी सुबह होती है, जहाँ एक लम्हा मरता है और दूजा जन्म लेता है !! उन परिंदो की उड़ानों और पंखो के बीच हवा का क़त्ल होते मैंने देखा है ! एक नंगा साधु जो सच को पारिभाषित करता है, एक सांप का बाम्बी से निकलना और चील के हवा में गोता लगाने की ललक !! दूर से आती रोशनी और दूर जाती दिखती है, ये जो ब्रह्माण्ड का विस्तार है, मेरा भी यही आधार है ! पानी है जो ज़मीन और आकाश के बीच का भेद है, मेरे चेतन और अवचेतन मन में शून्य हो जाने का संकेत है! जो अलौकिक प्रकाश तुमसे फूट रहा है, उसे क्या कहु, तुम में रक्त नहीं तुम सिर्फ 'सोच' हो मेरे कपाल की !!