विस्तार ही सीमा
और विस्तार ही अपार।
और विस्तार ही अपार।
विस्तार ही अवचेतन
और विस्तार ही असीम
और विस्तार ही असीम
विस्तार ही मूल
और विस्तार ही शेष
और विस्तार ही शेष
विस्तार ही जीव
और विस्तार ही अवशेष
और विस्तार ही अवशेष
विस्तार ही क्रूर
और विस्तार ही करूणा
और विस्तार ही करूणा
विस्तार ही सार
और विस्तार ही अन्त
और विस्तार ही अन्त
विस्तार ही तुम
और विस्तार ही हम।
और विस्तार ही हम।
BHAI WHAH
ReplyDeleteshukriya
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