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तितली

तितली हूँ मैं खवाबों की,
उड़ती थी मैं ख्यालों में।
कभी खुले आसमानों में,
और कभी बंद तालों में।।
तितली हूँ मैं खवाबों की....

खुशबु न बची थी गुलों में,
हवा भी दम घोंटती थी।
मांगती थी रहम बाग़बान से,
पर मुझमें ही कोई कमी थी।।
तितली हूँ मैं खवाबों की....

मौसम ने  पलटा खाया,
पंखों ने भी दम दिखाया।
उड़ी मैं कुछ पल ज़ोर से,
आ गिरी क़दमों में फिर शोर से।।
तितली हूँ मैं खवाबों की....

अंधेरों से दोस्ती है मेरी,
रोशनी से डर लगता है।
जो भी हाथ बढ़ते है मेरी ओर,
उन सायों से डर लगता है ।।
तितली हूँ मैं खवाबों की....

@Lokesh Gulyani




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होने नहीं देती

इक तड़प है जो सोने नहीं देती  ये दुनियाँ बेरहम रोने नहीं देती मैं चलता चला गली दर गली  मंज़िल है कि खोने नहीं देती  बहुत बार लगा कि कह दें सब  ग़ैरत है के मुँह खोलने नहीं देती  हम भी कभी हसीं थे  हसीं बना रहूं ये उम्र होने नहीं देती  भरा पेट नफ़रत ही बोता है  भूख़ प्रेम कम होने नहीं देती  नासूर बन गए अब ज़ख्म  फ़ितरत अच्छा होने नहीं देती   

आगे

बढ़ गया हूँ आगे, फिर पीछे कौन खड़ा है।  अड़ गया है साया, इसका क़द मुझसे बड़ा है।। इंसान हो, तो इंसान की तरह पेश आओ।  ये क्या कि अब वो गया, अब ये गया है।। सूरज डूबता है फिर उगने को, पता है ना।  लगता है बस आज (आज ) ही ये भूल गया है।। आज़ाद हो तो साँस लेकर दिखाओ।  क्या मतलब कि सीने पर बोझ पड़ गया है ।। तुम किसको पूछने आये बतलाओ।  वो जिसको ज़माना कब का भूल गया है।।

अब तलक वो - ग़ज़ल

अब तलक वो हमें याद करते हैं, थोड़ा-थोड़ा बर्बाद करते हैं।। काफ़िला तो गुज़र गया यारों, मुसाफ़िरों को याद करते हैं।। मंज़रे सहरा तब उभर आया, जब वो बारिश की बात करते हैं।। इंसा-इंसा को भी क्या देगा, क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं।।  ज़िल्लतें जिनकी ख़ातिर पी हमने, वही हमसे किनारा करते हैं।। थका-हारा दिल आख़िर टूट गया, क्यों अब उससे कोई आस रखते हैं।।