बात तब की है जब ना तुम थे ना हम थे, ना हवा थी ना पतंगे थे।
बात तब की है जब सूरज उगता नहीं था, चाँद दिखता नहीं था।
बात तब की है जब पेड़ नहीं सरसराते थे, पक्षी ना गुनगुनाते थे।
बात तब की है जब शून्य भी शून्य था, अँधेरा न्यून था।
बात तब की है जब नाद ना था, आलाप ना था।
पर कौन था जिसने रचा, ये तिलिस्म, ये घनघोर गुंजल।
मैं उलझा तुम उलझे, सब उलझे उलझते गए।
बात तब की है जब कुछ ना था, और सब कुछ था।
बात तब की है जब सूरज उगता नहीं था, चाँद दिखता नहीं था।
बात तब की है जब पेड़ नहीं सरसराते थे, पक्षी ना गुनगुनाते थे।
बात तब की है जब शून्य भी शून्य था, अँधेरा न्यून था।
बात तब की है जब नाद ना था, आलाप ना था।
पर कौन था जिसने रचा, ये तिलिस्म, ये घनघोर गुंजल।
मैं उलझा तुम उलझे, सब उलझे उलझते गए।
बात तब की है जब कुछ ना था, और सब कुछ था।
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