हिंदी
ऊपर से गुज़रते विमान का शोर, सामने इस जहां का शोर, दिल में उठते तूफ़ान का शोर.
एक सोच है जो शांत रखती है, पर उसमे न तो किसी का ख्याल है न कोई गुफ़तगू।
मैं पसरा हुआ हु, खुद में खुद को लपेटे हुए, जैसे टूटे पत्ते लिपट जाते है ज़मीन से.
कमरे कि खिड़की खुलना नहीं चाहती, और मुझमे भी चार कदम उठ कर उसे नींद से जगाने कि इच्छा नहीं।
पर क्या करू हु तो आदमज़ात चुप कहाँ बैठने वाला हु, चलो एक शोर मैं ही मचा देता हु, मोबाइल को जगा लेता हु.… पर ये क्या किसी को मेरी ज़रूरत नहीं, के एस. एम. एस., ईमेल, कोई फ़ॉर्वर्डेड मेसेज तक नहीं!
क्या सब इसी तरह शोर के शिकार है, क्या सबको खिड़की खोलने कि दरकार है!!
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English
Upar
se Guzarte Viman ka shor, Samne is jahan ka shor, dil mein uthte toofan ka
shor
Ek
soch hai jo shant rakhti hai, par us soch mein na to khayal hai na koi guft-gu....
Main
pasara hua hu, khud mein khud ko lapete hue, jaise toonte patte lipat jate hai
zamin se
Kamre
ki khidki Khulna nahi chahti, aur mujhme bhi char kadam uth kar usey neend se
jagane ki icha nahi....
Par
kya karu hu to aadamzat, chup kahan baithne wala hu, chalo ek shor main hi
macha deta hu, mobile ko jaga leta hu.... Par
ye kya is jahan mein kisi ko meri zarurat nahi, jo ek sms, email, koi fwdd msg
tak nahi....
Kya
sab isi tarah ke shor ka shikar hai, kya sabko khidki kholne ki darkar hai.
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