जब मैं अपनी सबसे सुन्दर कविता लिख रहा होऊँगा, तब मैं भूल जाऊंगा तुम्हें। मैं भूल जाऊँगा तुम्हारे अधर, लहराते बाल, भँवर पड़ते गाल, बिंदी और कुमकुम को। मैं भूल जाऊँगा तुम्हारी यादों को, सहज मीठी बातों को, गहरी रातों को, महकती साँसों को। यकीन मानों मैं भूल जाऊंगा, भूल जाऊंगा उन वादों को, हसीं इरादों को। मैं याद रखूँगा वो एक कड़वी बात जो तुमने कही थी, जाने-अनजाने में, किसी फ़साने में। न मुझे सताने को, न भरमाने को, बस कह दी थी, आवेग और शायद आवेश में। और मैं याद रखूँगा, ये नदी, पहाड़, प्रकृति, पेड़ पर बैठी चिड़िया, तारे और डूबता सूरज।।
Fitoor....jo kagaz pe utar aata hai...