तितली हूँ मैं खवाबों की, उड़ती थी मैं ख्यालों में। कभी खुले आसमानों में, और कभी बंद तालों में।। तितली हूँ मैं खवाबों की.... खुशबु न बची थी गुलों में, हवा भी दम घोंटती थी। मांगती थी रहम बाग़बान से, पर मुझमें ही कोई कमी थी।। तितली हूँ मैं खवाबों की.... मौसम ने पलटा खाया, पंखों ने भी दम दिखाया। उड़ी मैं कुछ पल ज़ोर से, आ गिरी क़दमों में फिर शोर से।। तितली हूँ मैं खवाबों की.... अंधेरों से दोस्ती है मेरी, रोशनी से डर लगता है। जो भी हाथ बढ़ते है मेरी ओर, उन सायों से डर लगता है ।। तितली हूँ मैं खवाबों की.... @Lokesh Gulyani
Fitoor....jo kagaz pe utar aata hai...