धूप से सुलगते पत्थरों पर कोई परिंदा बैठता तो होगा तपिश अपने पंखों की हवा से झेलता तो होगा। चलते चलो के चलते रहना ही नियम है किसी ने कहा होगा पर अपनी चाल रोक कर रस्ता तो निकलता होगा। हस्ती है तो बस्ती रोशन कर तुझ में जमाल तो होगा वजूद गुम जाए ग़म ना कर कोई तो कमाल होगा। तेरे लिए जो मुनासिब है वो तेरा होगा वक़्त जगह तरीक़ा ना सोच ख़ुद-ब-ख़ुद निसार होगा ।
Fitoor....jo kagaz pe utar aata hai...